Introduction

, this is Girish Rawate from India. My nick name is bunty. I have done graduation in Science and Education and now I am working in Bank of Baroda. I've married with one intelligent girl and living a happy life with her and our son Arjun :)

Sunday, June 21, 2020

भगवान

भगवान क्या है? यह प्रश्न कोई भी आपसे पूछे तो आप शायद उसका जवाब ना दे पाए। इस पोस्ट में इसी का जवाब लेकर आया हूं। भगवान क्या है यह मानव मस्तिष्क या मानव बुद्धि कभी नहीं समझ सकती। लेकिन हर मानव भक्ति करता है, कर्म  करता है योग करता है, किसके लिए? इन सभी का जवाब  मैं यहां दे रहा हूं। इसे समझने के लिए दो चीजें समझना होगा एक इष्ट देव और दूसरा स्वरूप। जैसा कि मैंने कहा भगवान को हम नहीं समझ सकते इस वजह से हम सभी, अपने-अपने मन में एक इष्ट देव को भगवान स्वरूप में स्थापित कर लेते हैं। यह इष्टदेव कोई भी हो सकता है। यह निर्भर करता है कि आप किस संप्रदाय से हैं, आपको क्या पसंद है, आपकी भावनाएं क्या हैं, जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण आदि। इष्ट देव को समझाने की आवश्यकता शायद नहीं है। वह सभी के मन में निहित है। दूसरी चीज है स्वरूप। क्या आपको पता है शिव और शंकर में क्या अंतर है। शिव एक स्वरूप है और शंकर लोगो के इष्ट देव, शिव इष्ट देव नहीं हो सकते। स्वरूप 3 तरह के होते हैं। शिव शक्ति और धर्म। आप जो भी इष्टदेव में श्रद्धा रखते हैं , फिर वह कोई पेड़ हो,साईं बाबा हो, कोई पत्थर हो, या शंकर भगवान हो या दुर्गा मां हो या अल्लाह हो। सभी को आप 3 स्वरूपों में  ही देखते हैं। पहला है शिव, दूसरा है शक्ति, और तीसरा है धर्म। जब आप पूजा करते हैं तो वह शक्ति स्वरूप की पूजा होती है। जब ध्यान करते हैं यह शिव स्वरूप का ध्यान होता है। जब कर्म होता है, कोई काम करते हैं तो धर्म का काम होता है। जैसा शेर शिकार करता है यह कर्म है और कर्म करना कि धर्म है। 
आपका  इष्ट देवता चाहे जो भी हो आपको उनकी उपासना इन 3 स्वरूप  में ही करनी पड़ती है। इसीलिए शिव को यदि आप भगवान समझते हैं क्योंकि शिव तो एक स्वरूप है इसीलिए यदि आप शिव की पूजा करते हैं तो यह शंकर हो जाता है। यदि धर्म की पूजा करते हैं तो वह विष्णु हो जाता है। आपको अपने इष्ट देव की पूजा आराधना तीनों स्वरूप में करनी होती है। इनमें से यदि एक ही स्वरूप की उपासना करेंगे तो वह आपको बड़ी हानि की ओर ले जाता है। जिस तरह राजा दक्ष विष्णु के उपासक थे, वास्तव में यह धर्म स्वरूप की उपासना थी उन्होंने कभी योग(ध्यान एवं योग) नहीं किया जो कि शिव स्वरूप की उपासना है। 
महाशिवरात्रि में यदि आप पूजा कर रहे हैं तो यह सर्वदा अनुचित है। क्योंकि शिव की पूजा वास्तव में शंकर की पूजा हो जाती है अर्थात शक्ति स्वरूप। इसका अर्थ यह है कि आप शिवरात्रि के दिन शक्ति उपासना कर रहे हैं यदि आपको शिव उपासना करना है तो आपको ध्यान(ध्यान एवं योग) ही करना होगा। 
हम जीवन में सुबह से लेकर शाम तक, बचपन से लेकर बुढ़ापे तक, जन्म से लेकर मृत्यु तक इन तीनों में ही व्यस्त होते हैं क्योंकि इसके अलावा और कुछ कर पाना संभव ही नहीं है। हम काम करते हैं, नौकरी करते हैं, लोग कहते हैं वर्क इस गॉड या ऐसा भी कहते हैं कर्म ही पूजा है वास्तव में कर्म धर्म से संबंधित है और यह धर्म स्वरूप में आप अपने इष्ट देव की ही उपासना कर रहे हैं।
ऐसी स्थिति में भगवान आपकी रक्षा नहीं करते बल्कि स्वयं धर्म आपकी रक्षा करता है। मंदिर जाइए या कहीं और आप सभी जगह शक्ति स्वरूप की ही पूजा करते हैं फिर चाहे वहां कुछ भी हो। और ध्यान, ध्यान करते समय आप कुछ भी नहीं करते मतलब शून्यता और वही शिव की उपासना है।

 सारांश यह है कि भगवान को हम नहीं जानते लेकिन भगवान जो भी हो, हम उसे अपने इष्ट देव के तौर पर मान लेते हैं। इसके तीन स्वरूप है- पहला स्वरूप है शक्ति इसकी हम पूजा करते हैं, दूसरा स्वरूप है शिव जिसका हम ध्यान करते हैं और तीसरा स्वरूप है धर्म जिसके लिए हम लोग कर्म या कार्य करते हैं।
यदि आपका कोई इष्ट देव नहीं है तो इसका अर्थ यह है कि आप साफ तौर पर शिव शक्ति और धर्म को अपना भगवान मानते हैं। ऐसी स्थिति में आप पूजा करते हैं, ध्यान करते हैं और कर्म करते हैं।
वास्तव में भगवान क्या है यह जान पाना किसी भी मनुष्य के लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। भगवान को नहीं जानते हुए भी हम उनके 3 स्वरूपों को जानते हैं। और हमें अपने जीवन में इन तीनों स्वरूपों का सम्मान करना होता है। शक्ति का अर्थ है - सब कुछ, शिव का अर्थ है - कुछ भी नहीं और धर्म का अर्थ हम द्रव्यों के गुण धर्मों से भी समझ सकते हैं या जैसे नदी का धर्म है बहना लोगों को तृप्त करना। धन्यवाद।

1 comment:

girishrawate_bunty said...

मैंने यह पोस्ट लिखने के पश्चात इंटरनेट में इससे मिलता जुलता आर्टिकल पढ़ा। उसमें लिखा था कि भगवान को पाने के तीन मार्ग हैं। ज्ञान, कर्म, और भक्ति। शायद ये मेरी सोच से काफी मिलते हैं। मैंने जिसे योग का नाम दिया शायद वह ज्ञान के करीब हो। लेकिन मैंने यहां ये कहा है कि तीनों मार्ग जरूरी है। केवल एक पे चलने से उद्धार नहीं होने वाला।